Gunjan Kamal

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छोटा मुंह बड़ी बात




*# छोटा मुंह बड़ी बात* 


मीना शर्मा की सभी सहेलियों ने जब मीना शर्मा से ये बात सुनी तो उसे सुनकर सभी को यही लग रहा था कि उसने जो उस वक्त वह बात कही थी वह छोटा मुंह बड़ी बात थी क्योंकि उसकी हैसियत इतनी नहीं थी कि वह किसी बड़े हैसियत  वालों को महत्वपूर्ण बात बता और समझा सके। 

वर्षों से दिन - रात देखें जा रहें स्वप्न आखिरकार कल पूरे होने जा रहे थे। शर्मा दंपत्ति खुश भी बहुत थे। सारी तैयारियां लगभग हो चुकी थी अब तो सिर्फ कल की सुबह का इंतजार था। कल की आने वाली सुबह अपनी ऑंखों से देखने के लिए मीना शर्मा जी ने वर्षों इंतजार किया था। 

वैसे तो मीना शर्मा जी को इस किराए के मकान में भी कोई खास दिक्कत अभी तक  नहीं थी। मकान मालिक भी भले मानुष थे अपना सा व्यवहार था उनका और यही वह वजह थी जिसके कारण शर्मा दंपत्ति और उनका परिवार पिछले बीस सालों से एक ही जगह पर उनके यहां पर रह रहा था लेकिन अपना घर आखिर अपना ही होता है चाहे वह छोटा हो या बड़ा और इस अपने घर की ख्वाहिश हर इंसान के भीतर रहती ही हैं। शर्मा दंपत्ति भी चाहते थे कि उनका अपना घर हो लेकिन दो बेटियों और एक बेटे की परवरिश में कोई भी इतना बचा कहां पाता है कि अपने सपनों को पंख देकर जल्द से जल्द मंजिल तक पहुंच जाएं। 

गृहस्थी की गाड़ी को सुचारू ढंग से चलाने के लिए मीना शर्मा जी भी अपने पति दिनेश शर्मा के साथ मिलकर कदम से कदम मिलाकर  चल रही थी। वह बतौर  शिक्षिका अपने जिले में स्थित मिडिल स्कूल में कार्यरत थी। पति की किराना की दुकान थी जो वह संभालते थे। वैसे तो इनके लिए दो बच्चों की परवरिश भी बहुत थी लेकिन पुत्र मोह और पुत्र द्वारा मरणोपरांत मुखाग्नि देने से मोक्ष मिलने की अवधारणा जो सदियों से हमारे समाज में चली आ रही है दोनों दंपत्ति भी इसी सोच से ग्रसित थे। दो बेटियों के बाद शर्मा दंपत्ति तीसरे बच्चे के लिए तभी तैयार हुए जब उन्हें यह लगने लगा कि हमारी तीसरी संतान बेटा ही होगा। वैसे यह सब तो ईश्वर के हाथ में है लेकिन फिर भी हमारे समाज में कुछ ऐसे तथाकथित लोगों की कमी नहीं है जो यह भ्रम फैलाते रहते  हैं कि इस बार तो  तुम्हें बेटा ही होगा। 

ईश्वर की इच्छा से शर्मा दंपत्ति की कामना पूरी हुई और वें एक सुंदर और स्वस्थ बेटे के माता - पिता तो बन गए लेकिन साथ ही घर-गृहस्थी की नैया डगमगाने भी लगी। किसी तरह ईश्वर का नाम लें लेकर गुजर-बसर हो रही थी तभी शर्मा दंपत्ति पर ईश्वर की एक और कृपा के फलस्वरूप मीना शर्मा जी मिडिल  की शिक्षिका बन गई। 
मीना शर्मा जी पर बढ़ती जिम्मेदारियों ने मन में दबी कामना और ऑंखों में बसे सपनों को पूरा कभी होने ही नहीं दिया। 

लोन लेकर दोनों बेटियों की शादी की अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने के कुछ वर्षों  बाद जब शादी के लिए ली गई रकम का ब्याज समेत जब भुगतान मीना शर्मा जी द्वारा कर दिया गया उसके बाद उनकी सिर्फ एक ही इच्छा बची हुई थी और वह थी अपना घर लेने की। नौकरी से  सेवानिवृत्त होने के कुछ महीनों बाद ही मीना शर्मा जी का स्वप्न पूरा होने वाला था। 

"माॅं! कल को आपकी या पापा द्वारा ली गई जमीन जायदाद मेरी ही होने वाली है तो क्यों ना आप कल ही  इस घर को मेरे नाम पर रजिस्ट्री कर दें?" बेटे प्रशांत द्वारा खाने की मेज पर कही गई यें बातें मीना शर्मा जी को कुछ सोचने पर विवश कर रही थी। "मैंने तो यह सोचा ही नहीं था कि घर किसके नाम पर होगा? मैंने तो सिर्फ यह सोचा था कि एक घर मेरा भी हो जो मेरा अपना हो।" दिनेश शर्मा जी तो सो रहे थे लेकिन  सारी रात मीना शर्मा जी के लिए सोचने का विषय यही था। 

"रजिस्ट्री तो मैं अपने नाम पर ही करवाऊंगी।" सामने बैठे रजिस्ट्री  ऑफिस के रजिस्ट्रार के सवालों का जवाब देते हुए मीना शर्मा जी ने कहा। 

बेटे और पति की प्रश्नवाचक निगाहों का जवाब देते हुए मीना शर्मा जी ने कहा "मेरे  घर की रजिस्ट्री अपने नाम करवा लेने पर भी मकान हमारे बेटे का ही रहेगा लेकिन यदि मैंने अभी ही  बेटे के नाम घर  करवा दी तो फिर यह निश्चित  नहीं है  कि मेरे पैसों से लिया गया यह घर मेरा ही होगा क्योंकि कल को बेटे -  बहू के मन में यह भी आ सकता है कि यह घर तो मेरा है और मेरे घर के मामले में मेरी माॅं को  बोलने का क्या अधिकार है? आप दोनों के साथ -  साथ यहाॅं उपस्थित सभी गवाहों को मैं यह बताना चाहती हूॅं कि अपने घर की रजिस्ट्री मैं अपने ही नाम करवाऊंगी।"  
      
रजिस्ट्री ऑफिस से लौटते वक्त मीना शर्मा जी के चेहरे पर एक अलग ही तरह की मुस्कान थी और शरीर में भी वह नई स्फूर्ति का एहसास  कर रही थी। अब उन्हें उस दिन का इंतजार था जब वह अपने नए घर में नई आशा और नई उम्मीदों के साथ प्रवेश करेंगी। मीरा शर्मा जी यदि अपनी कामवाली बाई की बात ना मानकर  पुराने ढर्रे पर चली आ रही सोच के अनुसार चलती तो आज उनके चेहरे पर यह खुशी ना झलक रही  होती क्योंकि पुरानी सोच को विदा कर नई  सोच के साथ  मीना शर्मा जी के जीवन के उस दिन की  दोपहर में सुबह का सूरज उदित हुआ था और वह भी अपनी कामवाली बाई के मुंह से छोटा मुंह बड़ी बात सुनने के बाद। 


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                                           धन्यवाद 🙏🏻🙏🏻

गुॅंजन कमल 💓💞💗

# मुहावरों की दुनिया



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5 Comments

Mahendra Bhatt

19-Feb-2023 09:06 PM

बहुत खूब

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शानदार

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अदिति झा

17-Feb-2023 10:39 AM

Nice 👍🏼

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